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BJP को समझ आई ‘सबका विश्वास’ की हकीकत, मुस्लिम बहुल सीटों पर हार मिलने के बाद लिया बड़ा एक्शन!


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2014 में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक नारा दिया था। सबका साथ-सबका विकास, यह नारा काफी कारगर साबित हुआ, बीजेपी को इस नारे से फायदा भी हुआ। 2019 में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने नारे में दो शब्द बढ़ा कर नया नारा दिया, सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास, लेकिन मोदीजी और भाजपा सबका विश्वास जीतने में बुरी तरह फेल हो गए हैं।

इसका ताजा उदाहरण एक बार फिर बंगाल और असम में आये चुनाव में देखने को मिला है। बंगाल और असम में मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया।दरअसल असम के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष रंजीत कुमार दास ने प्रदेश में पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चे को भंग कर दिया है। असम विधानसभा चुनावों में भाजपा के अल्पसंख्यक मोर्चा का प्रदर्शन निम्न स्तर का रहा।

प्रदर्शन इतना खराब था कि दल को अल्पसंख्यक मोर्चा के पंजीकृत सदस्यों के वोट भी नहीं मिले। इसी के मद्देनजर ये फैसला लिया गया है। यानि अब भाजपा को धीरे-धीरे सबका विश्वास की असली हकीकत समझ आ रही है।

असम में मुस्लिम बहुल इलाकों की सीटों पर जीत के लिए बीजेपी ने जानिया, जलेश्वर, बाघबार, दक्षिण सलमारा, बिलासीपारा पश्चिम, लहरीघाट, रूपोहीहाट और सोनाई से उम्मीदवार मैदान में उतारे थे। इन सभी सीटों से भाजपा को बेहद करारी हार मिली, पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चे के रजिस्टर्ड सदस्यों ने भी वोट नहीं दिया।

असम की 126 सीटों में भाजपा ने 60 सीट दर्ज की है, जबकि असम में कुल 31 मुस्लिम विधायक हैं, सब कांग्रेस और बदरुद्दीन अजमल की पार्टी AIUDF के हैं।

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