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कुमार राकेश की टिप्पणीः शी साहब, ये नेहरु का भारत नहीं बल्कि मोदी का नया भारत है!


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New Delhi:कुमार राकेश. कोरोना कहर से जहाँ पूरी दुनिया परेशान हैं,वही कोरोना महामारी का जनक कहा जाने वाला चीन को शर्म नहीं आती.चौतरफा आरोपो से घिरा चीन विश्व स्तर पर अपना मुंह छिपाने के कई रास्ते ढूंढ रहा है.शायद इसलिए चीन ने भारत की ओर अपना युद्धक रूख किया है.जिससे दुनिया का ध्यान उसके कोरोना महापाप से हटकर भारत-चीन युद्ध की ओर चला जाये.पर अब ऐसा नहीं होने वाला.इस बार चीन को कोई सफलता नहीं मिलने वाली.आने वाले दिनों में चीन को कोरोना जाँच क लिए देर सबेर दुनिया के सामने झुकना ही पड़ेगा.कहते है कर्म के अनुसार ही फल मिलता हैं. कोरोना युद्ध के इस संक्रमण काल के चीन चौतरफा घिर गया है.तिलमिला रहा है.छटपटा रहा है.चीन को कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है इसलिए वो शांति का रास्ता छोड़ युद्ध के रास्ते पर चल पड़ा है. भारत के परिपेक्ष्य में चीन को अब समझ लेना चाहिए कि ये जवाहरलाल नेहरु का भारत नहीं है बल्कि नरेंद्र भाई मोदी का नया भारत है.तब की बात कुछ और थी,अब की कुछ और.बहुत हो चुका.अब और नहीं.श्री शी साहब,ये वो 1962 नहीं है,बल्कि यह 2020 है.चीन और भारत दोनों की सूरत और सीरते बदली हैं.जहाँ चीन का विश्व में मान व सम्मान घटा हैं वही भारत की छवि व शक्ति दोनों में उतरोतर वृद्धि हुयी है.आगे भी होगी.चीन 1962 में दोस्ती की परिभाषा को महिमा मंडित कर भारत के साथ दगावाजी की थी.परन्तु चीन को 1967 में मुंह की खानी पड़ी थी.उसके बाद 1987 में भी अरुणाचल प्रदेश के मसले पर भी चीन को पीछे हटने को मजबूर होना पड़ा था.2017 में डोकलाम मसले पर भी चीन को पीछे हटना पड़ा था. चीन का इतिहास अशांति,दगावाज़ी,फरेब,झूठ ,अविश्वास और वादाखिलाफी से भरा हुआ है,वही भारत सत्य, शांति. सद्भावना, शौर्य, उदारता, भरोसा के लिए विश्व में मशहूर है.भारत ने विश्व में शांति,प्रेम और भाई चारा को बढ़ाने का कार्य किया है.1962 के पहले और बाद चीन ने भारत के साथ ही नहीं अन्य देशो के साथ क्या क्या किया है.ये इतिहास के खुला पन्ने हैं .चीन ने भारतीय प्रधानमंत्री नेहरु के साथ विश्वासघात किया था.भारत की कृपा से ही चीन UNSC का सदस्य बना.ये बात अलग है कि नेहरु शायद चीन की उन कलाबाजियों को नहीं समझ पाए.पर ये नरेन्द्र मोदी का भारत है. कोरोना काल में चीन का छवि विश्व में दागदार हुआ है तो भारत एक सेवादार के तौर पर महिमामंडित हुआ है.विश्व के ज्यादातर देश चीन को मौत का सौदागर बता रहे हैं.चीन ने अपने व्यापारिक प्रसार के लिए कोरोना का इस्तेमाल किया.मानव जैसे अमूल्य जीवन को चीन ने एक व्यापार वृद्धि के लिए माध्यम बनाया.पूरे विश्व को अपने क्रूर दानवी वृति का शिकार बनाया.जिससे सबसे पहले अमेरिका और चीन आमने –सामने आ गया.चीन के कार्य के खिलाफ उस अमानवीय कोरोना खेल को ख़त्म करने के लिए अमेरिका ने चीन के खिलाफ एक नया मुहिम की शुरुआत की हैं .जिसमे उनके साथ जर्मनी, फ़्रांस, इटली, स्पेन , जापान, कनाडा, आस्ट्रेलिया सहित कई विकसित और विकासशील देश हैं. उन सभी देशो ने चीन से आर्थिक मुआवजा की मांग की हैं. दुसरे शब्दों में आज कोरोना युद्ध में पूरा विश्व चीन के खिलाफ हो गया है.शायद इसीलिए दुनिया का ध्यान भटकाने के लिए चीन ने भारत के साथ ये युद्ध राग अलापा.जिससे कोई खास सुर नहीं निकलने वाला.क्योकि ये भारत अब वो भारत नहीं है,जो चीन को भी भली भांति मालूम है. कोरोना से जुड़े मौत के आंकड़े को लेकर विश्व के समक्ष चीन एक दोषी की तरह कटघरे में है .अमेरिका चीन को पानी पी पीकर कोस रहा है .पर चीन बहुत बड़ा बेशर्म है.पहले कोरोना फैलाया .फिर अपने देश में नियंत्रित बताया,फिर अपनी छवि चमकाने की कोशिश की.पर उसकी साजिश का पर्दाफाश अमेरिका ने कर दिया. इस कोरोना से जुड़े अपने व्यापारिक लडाई में चीन ने WHO को भी मोहरा बनाया था.पर अब वहां भी भारत का दबदबा हो गया.चीन से अघोषित दोस्ती से WHO पहली बार बदनाम हुआ.WHO की निष्पक्ष छवि पर दाग लगा.अमेरिका ने इसे मुद्दा बनाया.WHO की सालाना आर्थिक सहायता रोकने की घोषणा कर दी.अमेरिका 460 मिलियन डालर की सहायता WHO को देता है,जबकि चीन का सहयोग मात्र 38 मिलियन डालर का है.WHO प्रकरण पर चीन को एक दूसरा जबरदस्त झटका लगा.भारत को WHO का कार्यकारी बोर्ड का अध्यक्ष चुन लिया गया.भारत के स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने 22 मई को कार्य भार भी संभाल लिया.इससे चीन को जबरदस्त मिर्ची लगी.उस फ्रंट पर भी चीन की अब तगड़ी खिचाई होने की तैयारी बतायी जा रही है. विश्व में हर स्तर पर बदनामी झेल रहा चीन ने भारत के खिलाफ लद्दाख और सिक्किम सीमाओ पर अपनी गतिविधियाँ को तेज कर पूरी दुनिया को भ्रमित करने की कोशिश की है.वो तो चीन को भी पता है कि युद्ध के लिए उनके ग्रह दशा अभी ठीक नहीं हैं.फिर भी चीन ने अपने कुटिल और कातिल चाल में नेपाल और पाकिस्तान को मोहरा बनाया.भारत की तत्परता नेपाल के तीन भारतीय क्षेत्रो को कब्ज़ा वाला अभियान तो फिलहाल फुस्स हो गया लगता है,परन्तु चीन अपनी कुत्सित आदतों से बाज़ नहीं आने वाला. ऐसा लगता है. नेपाल का भारत से मनमुटाव का कारण व इतिहास में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की ढुलमुल नीति रही है.जिसके जड़ में सोनिया गाँधी भी बताई जाती हैं.कालांतर में भारत-नेपाल मनमुटाव का फायदा चीन ने उठाया और आज विश्व का एकमात्र हिन्दू राष्ट्र में भारत की तुलना में नेपाल में चीन का प्रभाव ज्यादा है.पाकिस्तान को लेकर उसकी स्थिति किसी से कुछ छिपी नहीं है.पाकिस्तान में भी चीन ने कई बड़े व्यापार खड़े किये थे,परन्तु आज वहां की स्थानीय समीकरण चीन के पक्ष में नहीं बताये जाते.पाकिस्तान के अवाम चीन की भ्रष्ट नीति से परेशान होकर उनके खिलाफत पर उतर आये है. कोरोना काल में चीन ने अचानक भारत के खिलाफ ऐसे युद्धक संकेत क्यों दिया? चीन क्यों बौखलाया? चीन का भारत के खिलाफ मोचा खोलने की मूल वजह कोरोना काल में भारत का उन देशों का साथ देना है जो कोरोना कारण की स्वतंत्र जांच की मांग कर रहे हैं.गौरतलब है कि आज की स्थिति में 62 से ज्यादा देशो ने कोरोना प्रसार के कारणों के लिए चीन के खिलाफ खुली जाँच की मांग कर दी है.भारत ने उन देशो का समर्थन किया है.इससे भी चीन घबरा गया है.चीन भारत को एक बड़ा देश मानता है.इसलिए उसने एक निशाना बनाने की कोशिश की है.पर वो शायद भूल गया कि जो नरेन्द्र भाई मोदी उन्हें अपने प्यारे झूले पर झूलने का आनंद दिला सकते है वही मोदी उन्हें अपनी राष्ट्र भक्ति के लिए उनको करारा व दो टूक जवाब भी दे सकते हैं. चीन सिर्फ भारत के साथ ही नहीं अन्य देशो के साथ भी पंगा लिया जिनमे ताइवान ,हांगकांग ,फिलिपीन ,वियतनाम दक्षिण कोरिया ,जापान प्रमुख हैं.पर चीन अपनी गीदड़ भभकी से ज्यादा आगे नहीं बढ़ सका.अब भारत मामले भी चीन को पीछे हटना पड़ सकता है,जिसके संकेत मिलने शुरू हो गए हैं.अमेरिका द्वारा हांगकांग मसले को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में उठाये जाने की पहल से चीन नरम हुआ है और लद्दाख में अपने पैर समेटने शुरू कर दिए हैं.इससे भी चीन को करारा झटका लगा है.ये भारत के लिए अच्छी खबर हैं. कहते है वैश्विक कूटनीतिक सम्बन्धो में ज्यादातर प्रेम कम व्यापार भाव ज्यादा होता है.लेन देन से व्यापार भी बढ़ता है और परस्पर प्रेम भी.प्रधानमंत्री मोदी के आने के बाद विश्व व्यापार में भारत की स्थिति पहले से बेहतर व मज़बूत हुयी है. यदि हम भारत चीन के व्यापारिक आंकड़ो पर नज़र डाले तो चीन का भारत में आयात का प्रतिशत भारत और अन्य देशो की तुलना में ज्यादा है.चीन भारत-चीन व्यापार में चीन के लिए भारत एक वरदान के तौर पर है.चीन भारत की तुलना में पांच गुना व्यापार ज्यादा करता है. एक आंकड़ा के अनुसार -2017-18 में भारत-चीन के बीच परस्पर व्यापार 89.6 बिलियन अमेरिकी डालर तक पहुँच गया था.यदि भारत अपनी ज़िद पर आ गया तो सबसे ज्यादा नुकसान चीन को ही होगा.वैसे भी चीन के गुस्से का सबसे बड़ा कारण उनके हाथ से धीरे धीरे खिसकता हुआ बड़ा बाज़ार है.जिस पर जल्द ही भारत का कब्ज़ा होने वाला है. एक जानकारी के अनुसार कोरोना की वजह से चीन में स्थित करीब एक हज़ार विदेशी कम्पनियाँ भारत की ओर रुख कर रही है.इससे भी चीन में घबरा गया है. स्वयं को महात्मा बुद्ध का अनुयायी बताने वाला चीन को उनकी नीतियों पर अमल करना चाहिए.जो कि चीन ऐसा नहीं कर रहा है .उलटे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने युद्ध का संकेत दिया है.चीन ने अपनी युद्धक सरीखे गतिविधियों की लद्दाख क्षेत्र में बढ़ाया है.चीन ने डोकलाम क्षेत्र पर भी उछलकूद मचाया है. दूसरी तरफ भारतीय सेना के तीनो अंगों को अलर्ट कर दिया गया है.भारत, पाकिस्तान और नेपाल के साथ चीन की सभी गतिविधियों पर नज़र रखे हुए है.केन्द्रीय राज्य मंत्री सेवा निवृत जनरल विजय कुमार सिंह ने कहा भारत सभी स्थितियों पर धैर्य व शांति से नजर रखे हुए है.भारत हर स्थिति के लिए तैयार है . ताज़ा स्थितियों के अनुसार,ऐसा लग रहा है चीन अभी युद्ध की स्थिति में नहीं है.यदि ऐसा करता है तो इन परिस्थितियों को तीसरे विश्व युद्ध का संकेत कहा जा सकता है.जिसमे चीन को विश्व स्तर पर बुरी तरह मुंह की खानी पड़ सकती है.इसलिए मानवता व विश्व शांति के हित के हित में ये आवश्यक है कि चीन अपनी गलतियां समय रहते सुधार ले,जिससे विश्व जगत में चीन अपनी गिरती साख पर थोडा विराम लग जाये. प्रधानमंत्री मोदी के साथ तमाम दोस्ती के नए नए गीत गाने के बाद चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने आसुरी भाव से एक नया सुर निकाला था .पर तेजी से बदलती परिस्थितियों के मद्देनजर भारत के दैवीय भाव से चीन को अपने सभी युद्धक सुरों को अपने बक्से में बंद करना पड़ सकता है.जिसके लक्षण दिखने शुरू हो गए हैं. भारत और चीन के तनातनी के बीच भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा हैं कि राजनयिक मोर्चे पर दिल्ली और बीजिंग के बीच मामले के समाधान के लिए बातचीत चल रही है. उन्होंने कहा कि हमारे सैनिकों ने सीमा प्रबंधन और कड़ाई से प्रोटोकॉल का पालन करने के लिए बेहद जिम्मेदार दृष्टिकोण अपनाया है. इसके साथ ही साथ ही, हम अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करेंगे. 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